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 Braj ki 5 pahadiya
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kaveeru
Junior Member


104 Posts
Posted - 11 August 2006 :  21:57:08

Jai Shree Krishna vaishnavo,

Braj ki 5 Pahadiyo ka varnan kiya gaya hai....

गोबर्धन पहाड़ी - मथुरा नगर के पश्चिम में लगभग मील की दूरी पर यह पहाड़ी स्थित है। इसकी ऊँचाई लगभग १०० फीट और लम्बाई ५ मील के लगभग है। ऐसी अनुश्रुति है कि इसकी ऊँचाई पहिले बहुत अधिक थी, किन्तु वह धटते-धटते इतनी कम अधिशेष रह गई है। गर्गसंहिता में गोबर्धन पर्वत की वंदना करते हुए इसे वृन्दावन में विराजमान और वृन्दावन की गोद में निवास करने वाला गोलोक का मुकुटमणि कहा गया है। गोवर्धन के महत्व की सर्वाधिक महत्वपूर्ण घटना यह है कि यह भगवान कृष्ण के काल का एक मात्र स्थिर रहने वाला चिन्ह है।

नंदगाँव की पहाड़ी - इसे 'नदीश्वर' अथवा 'रुद्रगिरि' भी कहा जाता है। १ यह ब्रज के नन्दगाँव नामक ग्राम में स्थित है, जो कृष्ण काल में भगवान् श्री कृष्ण के पालक-पिता नंद गोप की राजधानी थी। यह मथुरा शहर के पश्चिम में स्थित है इसकी लम्बाई लगभग आधी मील और ऊँचाई लगभग फीट है। इसके सवसे ऊँचे भाग पर नंदराय जी का मन्दिर है। पहाड़ी के चतुर्दिक ढलाव पर उसके नीचे नंदगाँव की बस्ती है। ब्रज के भक्त कवियों ने इस पहाड़ी की अपने वर्णनों में प्रशंसा वर्णित की है।

१. नंदीश्वर र्तृ नंद जसोदा गोपिन न्यौंत बुलाए। (कुंभनदास)

वरसाना की पहाड़ी - इसे ब्रम्हगिरि भी कहते हैं। यह ब्रज के वरसाना नामक ग्राम में स्थित है और इसकी स्थिति वर्तमान मथुरा शहर के पश्चिम में है, और यह नंदगाँव से लगभग ४ मील दक्षिण में है। भगवान कृष्ण के काल में यह राधा जी के पिता बृषभानु गोप का निवास स्थान था। वरसाना की पहाड़ी नंदगाँव पहाड़ी से कुछ बड़ी है और इसमें कई धार्मिक स्थल हैं, जो प्राकृतिक दृष्टिसे भी बड़े रमणीक हैं। 

इस पहाड़ी के ऊँचे स्थल पर भी लाडिली जी का सुन्दर मन्दिर है तथा दूसरे स्थलों पर अन्य मन्दिर निर्मित हैं। इसके चतुर्दिक बरसाना ग्राम की बस्ती है। ब्रज के भक्त कवियों ने वरसाना का भी वर्णन राधा-कृष्ण की लीलाओं के प्रसंग में किया है।

कामबन की पहाड़ी - यह पहाड़ी राजस्थान के कामबन नामक स्थान में स्थित है, जो ब्रज सीमान्तर्गत। इस पहाड़ी को कामगिरि भी कहा जाता है। यह लगभग ४०० गज में विस्तृत है।

चरण की पहाड़ी - यह छोटी पहाड़ी नंदगाँव और बरसाना की पहाड़ियों की भाँति मथुरा जिले की छाता तहसील में स्थित है। नंदगाँव से लगभग ६ मील उत्तर-पूर्व की ओर यह ब्रज के छोटी बठैंन नामक ग्राम में है। भक्तों की मान्यता है कि यहां पर भगवान् श्री कृष्ण के चरण चिन्ह हैं। ब्रज में एक दूसरी चरण पहाड़ी भी है, जो कामबन के समीप स्थित है, वहां भी भगवान् श्री कृष्ण के चरण चिन्ह होने का विश्वास किया जाता है।

उपर्युक्त पाँचों पहाड़ियों के अतिरिक्त बरसाने के निकटवर्ती ऊँचा गाँव में भी एक छोटी सी पहाड़ी है, जिसे सखीगिरि कहा जाता है। उसी के समीप रनकौली ग्राम में भी एक छोटी पहाड़ी है। ब्रज के भक्त कवियों की रचनाओं मे इन पहाड़ियों का वर्णन नहीं वर्णित है। परमानंद दास के एक पद में केवल चरण चरण पहाड़ी का वर्णन मिलता है।

१. लुकि लुकि खेलत आँख मिचौंनी 'चरन पहाड़ी' ऊपर। (परमानंददास)

Jai Shree Krishna..

Kavita

dadaji
Senior Member


240 Posts
Posted - 12 August 2006 :  18:57:40
Jai Jai Shree Gokulesh.

Kavitaji thodi derke liye lagaki Vrajme pahuch gaye. Pl. continue to share for some more places like Van, Upvan, Kund etc....

Haripriya.

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kaveeru
Junior Member


104 Posts
Posted - 15 August 2006 :  19:53:48

Jai Shree Krishna Smitaji,

Thanks for this, do you know I have not yet visited to Braj.. I am trying to collect some informations from internet.... Now I have collected information regarding van...

उक्त ग्रन्थों में ब्रज के १२ बन २४ उपबन तथा वहुसंख्यक अन्य प्रकार के बनों का विशद वर्णन हुआ है। विविध पुराणों में इनके नाम और संख्या के संबंध में कुछ मतभेद भी हैं, किन्तु पद्म पुराण में उल्लखित नाम और संख्या अधिक प्रचलित है। ब्रज की समस्त महत्वपूर्ण वस्तुओं का नामोल्लेख करने वाले कवि जगतनंद ने भी इन्हीं नामों को स्वीकार किया है।

ब्रज के सुप्रसिद्ध १२ बनों के नाम 

१. मधुबन - यह ब्रज का सर्वाधिक प्राचीन वनखंड है। राजकुमार ध्रुव इसी बन में तपस्या की थी। सत्रत्रुध्न ने यहां के अत्याचारी राजा लवणासुर को मारकर इसी बन के एक भाग में मथुरा पुरी की स्थापना की थी। वर्तमान काल में उक्त विशाल बन के स्थान पर एक छोटी सी कदमखंडी शेष रह गई है और प्राचीन मथुरा के स्थान पर महोली नामक ब्रज ग्राम बसा हुआ है, जो कि मथुरा तहसील में पड़ता है। 

२. ताल बन - प्राचीन काल में यह ताल के बृक्षों का यह एक बड़ा बन था और इसमें जंगली गधों का बड़ा उपद्रव रहता था। भागवत में वर्णित है, बलराम ने उन गधों का संहार कर उनके उत्पात को शांत किया था। कालान्तर में उक्त बन उजड़ गया और शताब्दियों के पश्चात् वहां तारसी नामक एक गाँव बस गया, जो इस समय मथुरा तहसील के अंतर्गत है।

३. कुमुद बन - प्राचीन काल में इस बन में कुमुद पुष्पों की बहुलता थी, जिसके कारण इस बन का नाम 'कुमुद बन' पड़ गया था। वर्तमान काल में इसके समीप एक पुरानी कदमखड़ी है, जो इस बन की प्राचीन पुष्प-समृद्धि का स्मरण दिलाती है।

४. बहुलाबन - इस बन का नामकरण यहाँ की एक बहुला गाय के नाम पर हुआ है। वर्तमान काल में इस स्थान पर झाड़ियों से घिरी हुई एक कदम खंड़ी है, जो यहां के प्राचीन बन-वैभव की सूचक है। इस बन का अधिकांश भाग कट चुका है और आजकल यहां बाटी नामक ग्राम बसा हुआ है।

५. कामबन - यह ब्रज का अत्यन्त प्राचीन और रमणीक बन था, जो पुरातन वृन्दाबन का एक भाग था। कालांतर में वहां बस्ती बस गई थी। इस समय यह राजस्थान के भरतपुर जिला की ड़ीग तहसील का एक बड़ा कस्बा है। इसके पथरीले भाग में दो 'चरण पहाड़िया' हैं, जो धार्मिक स्थली मानी जाती हैं। 

६. खिदिरबन - यह प्राचीन बन भी अब समाप्त हो चुका है और इसके स्थान पर अब खाचरा नामक ग्राम बसा हुआ है। यहां पर एक पक्का कुंड और एक मंदिर है।

७. वृन्दाबन - प्राचीन काल में यह एक विस्तृत बन था, जो अपने प्रकृतिक सौंदर्य और रमणीक बनश्री के लिये विख्यात था। जब मथुरा के अत्याचारी राजा कंस के आतंक से नंद आदि गोपों को वृद्धबन (महाबन) स्थित गोप-बस्ती (गोकुल) में रहना असंभव हो गया, तब वे सामुहिक रुप से वहां से हटकर अपने गो-समूह के साथ वृन्दाबन में जा कर रहे थे। भागवत् आदि पुराणों से और उनके आधार पर सूरदास आदि ब्रज-भाषा कावियों की रचनाओं से ज्ञात होता है कि उस वृन्दाबन में गोबर्धन पहाड़ी थी और उसके निकट ही यमुना प्रवाहित होती थी। यमुना के तटवर्ती सघन कुंजों और विस्तृत चारागाहों में तथा हरी-भरी गोबर्धन पहाड़ी पर वे अपनी गायें चराया करते थे। वृन्दाबन का महत्व सदा से श्रीकृष्ण के प्रमुख लीला स्थल तथा ब्रज के रमणीक बन और एकान्त तपोभूमि होने के कारण रहा है।

८. भद्रबन, ९. भांडीरबन, १०. बेलबन - ये तीनों बन यमुना की बांयी ओर ब्रज की उत्तरी सीमा से लेकर वर्तमान वृन्दाबन के सामने तक थे। वर्तमान काल में उनका अधिकांश भाग कट गया है और वहाँ पर छोटे-बड़े गाँव बस गये हैं। उन गाँवों में टप्पल, खैर, बाजना, नौहझील, सुरीर, भाँट पानी गाँव उल्लेखनीय हैं। 

११. लोहबन - यह प्राचीन बन वर्तमान मथुरा नगर के सामने यमुना के उस पार था। वर्तमान काल में वहाँ इसी नाम का एक गाँव बसा है। 

१२. महाबन - प्राचीन काल में यह एक विशाल सघन बन था, जो वर्तमान मथुरा के सामने यमुना के उस पार वाले दुर्वासा आश्रम से लेकर सुदूर दक्षिण तक विस्तृत था। पुराणों में इसका उल्लेख बृहद्बन, महाबन, नंदकानन, गोकुल, गौब्रज आदि नामों से हुआ है। उस बन में नंद आदि गोपों का निवास था, जो अपने परिवार के साथ अपनी गायों को चराते हुए विचरण किया करते थे। उसी बन की एक गोप बस्ती (गोकुल) में कंस के भय से बालक कृष्ण को छिपाया गया था। श्रीकृष्ण के शैशव-काल की पुराण प्रसिद्ध घटनाएँ - पूतना बध, तृणवर्त बध, शंकट भंजन, चमलार्जुन पतन आदि इसी बन के किसी भाग में हुई थीं। 
वर्तमान काल में इस बन का अधिकांश भाग कट गया है और वहाँ छोटे-बड़े कई गाँव वस गये हैं। उन गावों में बलदेव, महाबन, गोकुल और रावल के नाम से उल्लेखनीय है

ब्रज के पुराण प्रसिद्ध २४ उपबनों के नाम कवि जगतनंद ने इस प्रकार लिखे हैं - 

(१) अराट (अरिष्टबन), (२) सतोहा (शांतनुकुंड), (३) गोबर्धन, (४) बरसाना, (५) परमदरा, (६) नंदगाँव, (७) संकेत, (८) मानसरोवर, (९) शेषशायी, (१०) बेलबन, (११) गोकुल, (१२) गोपालपुर, (१३) परासोली, (१४) आन्यौर, (१५) आदिबदरी, (१६) विलासगढ़, (१७) पिसायौ, (१८) अंजनखोर, (१९) करहला, (२०) कोकिला बन, (२१) दघिबन (दहगाँव), (२२) रावल, (२३) बच्छबन, और (२४) कौरबबन।

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dadaji
Senior Member


240 Posts
Posted - 16 August 2006 :  14:52:40
Jai Jai Shree Gokulesh.

Very soon you will visit Vraj Kavitaji. Thanks for more information of places and if u can add some krishnalila mahatmya then it will be better for us.

Haripriya.

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kaveeru
Junior Member


104 Posts
Posted - 19 August 2006 :  00:56:59

Jai Shree Krishna Smitaji,

Thanks for encouraging me to provide some more information.. :)

शूरसेन या मथुरा मंडल जिसमें श्रीकृष्ण के लीला स्थल विशेष रुप से सम्मिलित है। इतिहास से यह स्पष्ट हो जाता है कि आभीर जाति आर्यों से इतर थी और उनकी संस्कृति बहुत समृद्ध थी तथा आर्यों की संस्कृति से उसमें काफी असमानता थी। आभीरों में स्री-स्वातंत्र्य आर्यों की अपेक्षा अधिक था, वे नृत्य-गान में परम प्रवीण और दो वेणी धारण करने वाली थीं। 'हल्लीश' या 'हल्लीसक नृत्य' इन आभीरों की सामाजिक नृत्य था, जिसमें आभीर नारियाँ अपनी रुचि के किसी भी पुरुष के साथ समूह बनाकर मंडलाकार नाचती थीं। हरिवंश पुराण के हल्लीसक-क्रीड़न अध्याय में उल्लेख है- कृष्ण की इंद्र पर विजय के उपरांत आभीर रमणियों ने उनके साथ नृत्य करने का प्रस्ताव किया। भाई या पति व अन्य आभीरों के रोकने पर भी वे नहीं रुकीं और कृष्ण को खोजने लगीं-

इसी नृत्य को श्री कृष्ण ने अपनी कला से सजाया तब वह रास ने नाम से सर्वत्र प्रसिद्ध हुआ। इस नृत्य को सुकरता व नागरता प्रदान करने के कारण ही आज तक श्रीकृष्ण 'नटनागर' की उपाधि से विभूषित किए जाते हैं। द्वारका के राज दरबार में प्रतिष्ठित हो जाने के उपरान्त द्वारका आकर उषा ने इस नृत्य में मधुर भाव-भंगिमाओं को विशेष रुप से जोड़ा व इसे स्री-समाज को सिखाया और देश देशांतरों में इसे लोकप्रिय बनाया। सारंगदेव ने अपने 'संगीत-रत्नाकर' में इस तथ्य की पुष्टि की है। इस प्रकार रास की परम्परा ब्रज में जन्मी तथा द्वारका से यह पूरे देश में फैली। जैन धर्म में रास की विशेष रुप से प्रचार हुआ और उसे मन्दिरों में भी किया जाने लगा, क्योंकि जैनियों के २३वे तीर्थकर भगवान नेमिनाथ भी द्वारका के ही मदुवंशी थे। उन्हें प्रसन्न करने का रास जैन धर्म में भी एक प्रधान साधन माना गया था, परन्तु बाद में अश्लीलता बढ़ जाने के कारण जैन मुनियों ने इस पर रोक लगा दी थी।
ब्रज का रास भारत के प्राचीनतम नृत्यों में अग्रगण्य है। अत: भरतमुनि ने अपने नाट्यशास्र में रास को रासक नाम से उप-रुपकों में रखकर इसके तीन रुपों का उल्लेख किया है- मंडल रासक, ताल रासक, दंडक रासक या लकुट रासक। देश में आज जितने भी नृत्य रुप विद्यमान हैं, उन पर रास का प्रभाव किसी-न-किसी रुप में पड़ा है। गुजरात का 'गरबा', राजस्थान का 'डांडिया' आदि नृत्य, मणिपुर का रास-नृत्य तथा संत ज्ञानदेव के द्वारा स्थापित 'अंकिया नाट' तो पूरी तरह रास से ही प्रभावित नृत्य व नाट्य रुप है।

प्रसिद्ध धार्मिक स्थलें

सनोरख - यह मुनिश्रेष्ठ सौरभ की तपस्या स्थली हैं।

कालीदह - यमुना किनारे का वह भाग है जहाँ पर कालिया नाग रहता था। उसका मान-मर्दन करने को भगवान श्रीकृष्ण कदम्ब पर से जमुना में कूदे थे।

द्वादस आदित्य टीला - काली नाग का दमन कर जब भगवान जल से निकलकर इस टीले पर आए तो ठण्ड से काँपने लगे। तब सूर्य ने द्वादस कला धारण कर भगवान श्रीकृष्ण को गर्मी पहुँचाकर शीत का निवारण किया। चैतन्य सम्प्रदाय के सनातन गोस्वामी ब्रज में आने पर इसी स्थान पर ठहरे थे और वहीं उनको स्वप्न दिखाई दिया था।

अद्वेैतव - इस स्थान पर अद्वेैत स्वामी तपस्या करते थे। कालान्तर में जब चैतन्य महाप्रभु ब्रज में आए तो उन्होंने भी इसी वट के नीचे निवास किया था।

श्रृंगार व - यहाँ सखाओं ने भगवान का विविध प्रकार से श्रृंगार किया था। तभी से यह स्थान इस नाम से प्रसिद्ध है। चैतन्य वंशीय नित्यानन्द गोस्वामी ने यहाँ वास किया और उनके परिवार जनों का तभी से इस स्थान पर अधिकार चला आ रहा है।

सेवाकुंज -इसको निकुंजवन भी कहते है।अहाते के अन्दर यह छोटा सावन है। यहाँ एक ताल और एक कदम्ब का पेड़ है। कोने में एक छोटा-सा मन्दिर है। कहा जाता है कि रात्रि को यहाँ भगवान श्रीकृष्ण राधाजी के साथ विहार करते हैं। यहाँ रात्रि को रहना वर्जित है।
चीरघा - यमुना के किनारे इस घाट का महत्व इसलिए अधिक है कि भगवान श्रीकृष्ण ने यमुना में नग्न स्नान करती गोपियों के वस्र हरण किए थे।

रास मण्डल - चैतन्य मतावलम्बियों का यह कथन है कि भगवान ने यहाँ रास किया था।

किशोर वन - सेवाकुंज व निधिवन की भाँति है और श्री हरिराम व्याम की साधना स्थली है।

निधि वन -  धारणा है कि श्रीकृष्ण और राधा यहाँ विहार करते थे। स्वामी हरिदासजी यहीं पर निवास करते थे और यहीं उनको बाँके बिहारीजी की मूर्ति प्राप्त हुई, जो मन्दिर में है। श्री हरिदास जी की समाधि यहीं हैं।

धीर-समीर - भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं का पावन स्थल है।

ब्रह्म कुण्ड - इस कुण्ड के ऊपर ब्रह्मजी ने तपस्या की थी। पास ही अशोक का एक वृक्ष है। वैशाख शुक्ल द्वादशी को मध्याह्म के समय उसमें एक फूल खिलता है, लोग उसके दर्शन करते हैं।

वेणुकूप - भगवान श्रीकृष्ण ने राधाजी की प्यास बुझाने के लिए बांसुरी से कूप का निर्माण किया था।

दावानल कुण्ड - कालिया दमन के अवसर पर भगवान श्रीकृष्ण ने यहाँ दावाग्नि का पान किया था।

ज्ञान गुदड़ी - कहा जाता है कि जब उद्ववजी श्रीकृष्ण का संदेश लेकर आए थे, तब उनकी गोपियों से इसी स्थान पर वह ज्ञान-वार्ता हुई थी।

इमलीतला - पहली बार श्री चैतन्य महाप्रभु वृन्दावन पधारे थे तो इमली के इसी वृक्ष के नीचे ही बैठे थे।

राधा बाग - श्री रंगनाथजी के बगीचे के समीप है जहाँ कत्यायनी देवी का भव्य मन्दिर है।

टटिया स्थान - श्री हरिदासजी की शिष्य परम्परा का स्थान है। राधाष्टमी के दिन यहाँ अच्छा मेला लगता है।

बंशीव - यहाँ पुरातन वट वृक्ष है। कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण गोपियों को रास के लिए बुलाने को यहाँ खड़े होकर बंसी बजाते थे।

Thanks

Jai Shree Krishna

Kavita....

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friendmonu
Mover & Shaker Member


280 Posts
Posted - 19 August 2006 :  19:19:26
Jai Shri Krishna!!

Good going Kavitaji, if possible pls tell some details about "Puchari ke Lothaji"

Jai Shree Krishna!!

Regards,

Monica. Go to Top of Page
kaveeru
Junior Member


104 Posts
Posted - 22 August 2006 :  02:49:33

Jai Shree Krishna Monicaji,

Thanks...:)

गोवर्धन की परिक्रमा के तीर्थस्थल
श्री गिरि गोवर्धन और श्री यमुना भगवान श्रीकृष्ण के समय की साक्षी हैं । श्री गिरिराज तो जन-जन के देवता हैं । इसकी परिक्रमा पर ब्रजवासा ही नहीं दूर-दूर से आने वाले श्रद्धालु जन अपने को धन्यभाग्य मानते हैं ।

परिक्रमा करते समय मार्ग में अनेकों मन्दिर व कुण्ड आदि आते हैं । इसमें से जो मुख्य हैं :- 

आन्यौर
परिक्रमा मार्ग में गिरिराज जी की तलहटी में यह प्राचीन गाँव बसा हुआ है । यहाँ महाप्रभु बल्लभाचार्य पधारे थे । कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने इसी स्थान पर गोवर्धन- पूजा ब्रजवासियों से कराई थी । सद्दुू पांडे का घर, महाप्रभुजी की बैठक, श्रीनाथ जी का मन्दिर पर्वत शिखर पर कुंभनदास की समाधि संकर्षण कुण्ड के किनारे, दाऊजी का मन्दिर, गौरी कुण्ड आदि सरोवर यहीं हैं ।

गोविन्द कुण्ड
देवराज इन्द्र ने हार मानकर श्रीकृष्णजी को कामधेनु गाय के दूध से स्नान कराया था। और उन्हें गोविन्द कहकर पुकारा था । पर्वत के मध्य शिलाओं में श्रीकृष्णजी की छड़ी, टोपी आदि हैं । यहाँ गोविन्दजी का मन्दिर, गौघाट पर श्रीनाथजी का मन्दिर, श्री बठ्ठलनाथजी और नागाजी की बैठकें दर्शनीय हैं । इसके बाद परिक्रमा मार्ग में ही गन्धर्व कुण्ड, टोका दाऊजी का मन्दिर तथा सात कन्दरायें हैं ।

पूछरी का लौठा
गोवर्धन श्रेणी यहाँ आकर अलोप हो जाती है और परिक्रमा जतीपुरा की ओर मुड़ जाती है यहीं पर पूछरी गाँव और पूछरी के लौठा का मन्दिर है । यह हनुमानजी का ही एक स्वरुप है जिन्हें माखन लूटने को श्रीकृष्णजी ने बिठाया था । समीप ही अप्सरा कुण्ड, टीले पर नृसिंहजी का मन्दिर, नवल बिहारीजी का मन्दिर, गोपाल तलैया आदि और गिर्राजजी की तलहटी में इन्द्रकुण्ड तीर्थ, सुरभि कुण्ड, चरण शिला, ऐरावत कुण्ड और हरजी कुण्ड भी हैं ।

जतीपुरा :जतीपुरा गोवर्धन की तलहटी में पुष्टिमार्गीय सम्प्रदाय का केन्द्र है । यहाँ मुखारविन्द के दर्शन हैं । महाप्रभुजी व गोकुलनातजी की बैठकें हैं । मोतीमहल, गिरिराज बाग, मदनमोहनजी का मन्दिर, श्रीनाथजी का प्राकट्य मन्दिर हैं जो दर्शनीय है । यहाँ मुखारविन्द पर दूध व भोग चढ़ाया जाता है ।

जतीपुरा से आगे, सूर्यकुण्ड, बिलछू कुण्ड, दंडौता हनुमान मन्दिर और राधाकुण्ड की ओर बढ़ने पर लुटेरा हनुमान व उद्धव कुण्ड है । राधाकुण्ड में प्रवेश करने पर शिव पोखर, मलिहारी कुण्ड, भनोखर, कुजबिहारी मठ, गोविन्द मन्दिर, गिर्राजजी की जिह्मवा, पाँच पाँडव घाट, हरिवंशराय की बैठक, ललिताकुण्ड, गोपकुआँ, अष्टसखी के मन्दिर हैं ।

राधाकुण्ड-कृष्णकुण्ड : राधाकुण्ड की बस्ती इस कुण्ड के नाम पर ही है । श्री राधाकृष्ण का प्रधान विहार स्थल है । यहाँ बराबर-बराबर दोनों कुण्ड हैं तथा दोनों का जल स्तर एक ही है ।

कुसुम सरोवर :यह विशाल सुन्दर सरोवर राधाकुण्ड से गोवर्धन के मार्ग में है । यहाँ श्री श्यामसुन्दर ने श्री किशोरीजी का पुष्पों से श्रृंगार किया था । यह सफेद पत्थर का रमणीय विशाल सरोवर है जिसे भरतपुर के महाराजा जवाहर सिंह ने बनवाया था । पक्के घाट और उन बनी सुन्दर छतरियाँ हैं जिनमें सुन्दर चित्रकारी की हुई है । समीप ही उद्धवजी की बैठक और दाऊजी का मन्दिर है । नारद कुण्ड पर नारदजी ने तपस्या की थी ।

पारासौली-चंद्र सरोवर
जमुनावत गाँव के बाद पारासौली स्थान है जहाँ चन्द्र सरोवर और सुरदासजी की कुटी है । पास ही श्रृंगार मन्दिर, रासमंडल, बल्देवजी का प्राचीन मन्दिर और संकर्षण कुण्ड है। चन्द्र सरोवर बहुत सुन्दर पक्का अष्टकोण रुप में निर्मल जल से परिपूर्ण रहता है । जमुनावत गाँव ब्रजभाषा कवि कुंभनदास का निवास-स्थल था । पारासौली को सूरदासजी की जन्मस्थली कही जाती है । श्रीनाथजी का जलघड़ा, इन्द्र के नगाड़े, रासलीला का स्थान है । महाप्रभु बल्लभाचार्य जी ने भागवत का पारायण किया था । 

Thanks

Kavita..

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dadaji
Senior Member


240 Posts
Posted - 22 August 2006 :  14:11:37
Jai Jai Shree Gokulesh.

We r enjoing Kavitaji pls continue...

Haripriya.

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kaveeru
Junior Member


104 Posts
Posted - 24 August 2006 :  04:09:17

Jai Shree Krishna,

I found some information related to Meaning of Braj....

ब्रज शब्द संस्कृत धातु ब्रज से बना है, जिसका अर्थ गतिशीलता से है। जहां गाय चरती हैं और विचरण करती हैं वह स्थान भी ब्रज कहा गया है। अमरकोश के लेखक ने ब्रज के तीन अर्थ प्रस्तुत किये हैं- गोष्ठ (गायों का बाड़ा) मार्ग और वृंद (झुण्ड) १ संस्कृत के वृज शब्द से ही हिन्दी का ब्रज शब्द बना है

वेदों से लेकर पुराणों तक में ब्रज का सम्बध गायों से वर्णित किया गया है। चाहे वह गायों को बांधने का बाडा हो, चाहे गोशाला हो, चाहे गोचर भूमि हो और चाहे गोप-बस्ती हो। भागवतकार की दृष्टि में गोष्ठ, गोकुल और ब्रज समानार्थक हैं। भागवत के आधार पर सूरदास की रचनाओं मे भी ब्रज इसी अर्थ में प्रयुक्त हुआ है।

मथुरा और उसका निकटवर्ती भू-भाग प्राचीन काल से ही अपने सघन वनों, विस्तृत चारागाहों, गोष्ठों और सुन्दर गायों के लिये प्रसिद्ध रहा है। भगवान श्रीकृष्ण का जन्म यद्यपि मथुरा नगर में हुआ था, तथापि राजनैतिक कारणों से उन्हें जन्म लेते ही यमुना पार की गोप-वस्ती में भेज दिया गया था, उनकी वाल्यावस्था एक बड़े गोपालक के घर में गोप, गोपी और गो-वृंद के साथ बीती थी। उस काल में उनके पालक नंदादि गोप गण अपनी सुरक्षा और गोचर-भूमि की सुविधा के लिये अपने गोकुल के साथ मथुरा निकटवर्ती विस्तृत वन-खण्डों में घूमा करते थे। श्रीकृष्ण के कारण उन गोप-गोपियों, गायों और गोचर-भूमियों का महत्व बड़ गया था।

पौराणिक काल से लेकर वैष्णव सम्प्रदायों के आविर्भाव काल तक जैसे-जैसे कृष्णौ-पासना का विस्तार होता गया, वैसे-वैसे श्रीकृष्ण के उक्त परिकरों तथा उनके लीला स्थलों के गौरव की भी वृद्धि होती गई। इस काल में यहां गो-पालन की प्रचुरता थी, जिसके कारण व्रजखण्डों की भी प्रचुरता हो गई थी। इसलिये श्री कृष्ण के जन्म स्थान मथुरा और उनकी लीलाओं से सम्वधित मथुरा के आस-पास का समस्त प्रदेश ही ब्रज अथवा ब्रजमण्डल कहा जाने लगा था। सूरदास तथा अन्य व्रजभाषा के भक्त कवियों और वार्ताकारों ने भागवत पुराण के अनुकरण पर मथुरा के निकटवर्ती वन्य प्रदेश की गोप-बस्ती को ब्रज कहा है और उसे सर्वत्र 'मथुरा', 'मधुपुरी' या 'मधुवन' से प्रथक वतलाया है।  आजकल मथुरा नगर सहित वह भू-भाग, जो श्रीकृष्ण के जन्म और उनकी विविध लीलाओं से सम्बधित है, ब्रज कहलाता है। इस प्रकार ब्रज वर्तमान मथुरा मंडल और प्राचीन शूरसेंन प्रदेश का अपर नाम और उसका एक छोटा रुप है। इसमें मथुरा, वृन्दाबन, गोवर्धन, गोकुल, महाबन, वलदेव, नन्दगाँव, वरसाना, डीग और कामबन आदि भगवान श्रीकृष्ण के सभी लीला-स्थल सम्मिलित हैं। उक्त ब्रज की सीमा को चौरासी कोस माना गया है।

भागवत मे 'ब्रज' क्षेत्रवायी अर्थ में ही प्रयुक्त हुआ है।  वहां इसे एक छोटे ग्राम की संज्ञा दी गई है। उसमें 'पुर' से छोटा 'ग्राम' और उससे भी छोटी बस्ती को 'ब्रज' कहा गया है। १६वीं शताब्दी में 'ब्रज' प्रदेशवायी होकर 'ब्रजमंडल' हो गया और तव उसका आकार ८४ कोस का माना जाने लगा था।  उस समय मथुरा नगर 'ब्रज' में सम्मिलित नहीं माना जाता था। सूरदास तथा अन्य व्रजभाषा के भक्त कवियों और वार्ताकारों ने भागवत पुराण के अनुकरण पर मथुरा के निकटवर्ती वन्य प्रदेश की गोप-बस्ती को ब्रज कहा है और उसे सर्वत्र 'मथुरा', 'मधुपुरी' या 'मधुवन' से प्रथक वतलाया है। आजकल मथुरा नगर सहित वह भू-भाग, जो श्रीकृष्ण के जन्म और उनकी विविध लीलाओं से सम्बधित है, ब्रज कहलाता है। इस प्रकार ब्रज वर्तमान मथुरा मंडल और प्राचीन शूरसेंन प्रदेश का अपर नाम और उसका एक छोटा रुप है। इसमें मथुरा, वृन्दाबन, गोवर्धन, गोकुल, महाबन, वलदेव, नन्दगाँव, वरसाना, डीग और कामबन आदि भगवान श्रीकृष्ण के सभी लीला-स्थल सम्मिलित हैं। उक्त ब्रज की सीमा को चौरासी कोस माना गया है।

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manish1
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Posted - 25 August 2006 :  06:41:13
Jai Shri krishna,

have not finished reading fully, but please continue and very nice post.

Manish 
Jai Shree Krishna Go to Top of Page
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